Thursday, April 8, 2010

इल्ज़ाम

जिस वक़्त भरे घर में तन्हा मुझे पाया है भूली हुयी यादों नें जी भर कर रुलाया है इस धुप के जंगल में जाऊ भी कहा जाऊ सूरज से शिकायत क्या दुश्मन मेरा साया है मैं अपने चरागों की किरण को भी तरसता हू आंधी में जिन्हें मैंने भुझने से बचाया है दुनिया के मिटाने से मिटते है कही रिश्ते वो आज भी है अपना कहने को पराया है वो रात वो तन्हाई एक अंजुमन है आई फिर याद मुझे आई फिर उसने बुलाया है जीने का हमें अंदाज आया है न आएगा ये सच है की जीने का इल्ज़ाम उठाया है.!!!!!!!!!!

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