नयन से नीर बहता है मिलन की आस बढती है
जिगर में दर्द होता है कसम से में कहता हु
सनम से आस रखता हु चुभन दिल में होती है
आँखों की नींद उडती है होटों की प्यास बढती है
नयन तू नीर न बहने दे नीर में मेरी प्रियतमा है
जमी पर न गिरने दे नीर की बहती रस को
होठों से पीने दे होठों में प्रियतमा का रस है
उस रस में रसने दे नयन तू नीर न बहने दे........
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
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