Friday, April 16, 2010

उस रात: प्रलय

वो मेरे जीवन की सबसे काली सुबह थी
उस दिन मैं नहीं गया काम पर
और मुझे डराते रहे दिन भर काले सपने
उस रात में जागता रहा और बड़बड़राता रहा
रात भर........
वैसी रात मैंने कभी देखी नहीं थी और न देखू शायद
उस रात की सुबह मेरी धमनियों का रक्त ठंढा और नीला पड़ चुका था
और ढकी हुयी मेरी लाश बर्फ की सफ़ेद चादर से
उस रात की सुबह में मर चुका था लेकिन साँस थी
की नहीं छोड़ रही थी साथ.......
उस रात की सुबह दिन भर रिसता रहा लहू मेरे बदन से
और मैं उसको पीता रहा....
उस दिन मैंने जाना अपने लहू का स्वाद की वह कितना जायेकेदार था....
उस रात की सुबह एक काला और डरावना सूरज निकला
उस रात की सुबह फुफकारती रही हवाये काले नागो सी....
उस रात की सुबह बरसते रहे आकाश से गोले
और फूटते रहे मेरे शरीर में फफोले
उस सुबह मैंने अपने ठन्डे जिस्म और रुकी हुयी साँस को देखा
उस रात मैंने अपने लहू को थराते और कापते देखा
उस रात एक पहाड़ टूट कर गिर पड़ा मेरे जिस्म पर
और उसके नीचे दबा मैं लिखते रहा कवितायेँ
उस रात भर जलते रहे वेद और ऋचाये रोती रही
उस रात मैंने एक जन्म में कई जन्मो की नरक यात्रा की........

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