Thursday, April 8, 2010

कोई मुंतिजर होता!!!!!!

जिन्दगी के खाको में रंग भर गए होते
काश मेरी आँखों के खवाब मर गए होते
दर-ब-दर भटकना नसीब है अपना
तू अगर सदा देता हम ठहर गए होते
फिर हवा ने शाखों को बेलिबास कर डाला
जख्म पिछले मौसम के कुछ तो भर गए होते
खुद को जोड़े रखा है शायिरी में
शायिरी न होती जो हम बिखर गए होते
इन उदास रातों की सुरमई थकन लेकर
कोई मुंतिजर होता हम भी घर गए होते.......

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