Thursday, April 29, 2010

ख्वाब


पुरे सफ़र में हम साथ थे
चांदनी लपेटे हुवे तुम
और मै तुम्हे पुकारता हुवा ..अपनी बाहों में ..!
वो खुबसूरत सा चेहरा ..वो निखार..
गालो की लाली
वो पाजेब की छनकती आवाज
वो फूलो के कंगन
होटो पर मेरा नाम
वो एक दुसरे पर न्योछावर होती नजरे ..!

वो चाँद भी हम पर हसने लगा था ..
होश ..आहोश का वो खोना
देर तक बस तेरे चेहरे में गूम हो जाना
बाते ..बाते...बस तेरी बाते
और मेरा वो तुम्हे बस सुनते रहना..

क्या बताऊ जानम ...क्या ख्वाब था ..!!!
अब जाकर समझ में
आ रहा है
के कितने फासले है हम दोनों में ..

काश मै इस ख्वाब से नहीं जाग पाता ...
ख्वाब को ख्वाब हि रहने देता..

1 comment:

  1. please see original poem by its creator
    http://sajidshaikhpoems.blogspot.com
    Mr. Siddhart why you are posting all my poems in your name ?

    ReplyDelete